Tuesday, March 08, 2011

सरोकार » पुलिस बेगुनाह मुसहर को परेशान करती है

सरोकार » पुलिस बेगुनाह मुसहर को परेशान करती है

पुलिस बेगुनाह मुसहर को परेशान करती है


डॉ. लेनिन रघुवंशी पूर्वी उत्तरप्रदेश में ग़रीब और कमज़ोर लोगों के साथ होने वाले ज़ोर-जुल्‍म की कहानियां लगातार सरोकार को भेज रहे हैं. इस बार पेश है वाराणसी में पुलिस उत्‍पीड़न के शिकार कमलेश मुसहर की दास्‍तां उन्‍हीं की जुबानी

                                                            सहायता राशि के साथ कमलेश

मेरा नाम कमलेश मुसहर है। मैं ग्राम-गाँगकला, पोस्ट-बड़ागाँव, थाना-बड़ागाँव, ब्लाक-बड़ागाँव, तहसील-पिण्डरा, जिला-वाराणसी का रहने वाला हूँ। मेरे परिवार में मेरी पत्नी शांति देवी है। मेरी तीन लडकियाँ तथा दो लड़के है। सभी लड़कियों और एक लड़के की शादी मैंने किसी तरह कर दी है। अभी एक लड़का जिसकी शादी की उम्र हो गयी है लेकिन पुलिस यातना के कारण शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण अभी तक उसका विवाह नहीं हो पाया है।

पहले मैं शादी में बाजा बजाने का काम करता था, लेकिन अभी अस्वस्थ और दमा के रोगी होने के कारण मै भट्ठे पर अपनी पत्नी की मजदूरी करने में मदद करता हूँ। आज से करीब दस साल पहले अपने परिवार के साथ हँसी ख़ुशी जीवन बिता रहा था। तभी उसी साल (2000) गर्मी के महीने में एक आँधी सी आयी और मेरी जिन्दगी तहस-नहस हो गयी। मैं अपनी बहन के यहाँ लड़के की शादी में धरसौना गाँव में गया था। शादी कुशल-मंगल बीतने के बाद सभी रिश्तेदार अपने घर वापस चले गये। मैं भी वापस घर आ गया। मुझे यह बात उस समय पता नहीं था कि धरसौना में किसी राजभर की हत्या हुई है। शादी से आकर थक कर हम लोग मड़ई के बाहर नींद में सो रहे थे, तभी रात के करीब ग्यारह बजे पुलिस की गाड़ी बस्ती के बाहर आकर रूकी। गाड़ी की तेज आवाज सुनकर मेरी नींद खुली तो देखा-पुलिस! मैं आँख मलते हुए डर से खड़ा हो गया और सोचा इतनी रात को बस्ती में पुलिस क्यो आयी। दरोगा और पुलिस बस्ती में छा गये और १४ लोगों को मेरी बस्ती से ले जाने लगे। रात होने के कारण बस्ती के सभी लोग कहीं अन्दर कहीं बाहर सोये थे। मैंने हिम्मत करके डरते हुए पुलिस से पूछा-‘साहब हमें क्यो ले जा रहे हैं, हमारा गुनाह क्या है।’ तब पुलिस ने गन्दी-गन्दी गालियां देते हुए और मुझे मारते हुए कहा-‘‘साले चलो थाने वहीं तुम्हें बताता हूँ।’’ यह सुनते ही मेरा साँस की रफ्तार और तेज हो गई। मेरे बदन से पसीना निकलने लगा। वो लोग मुझे थाने ले गये। हम सभी लोग परेशान थे। थाने में फूलपुर थाने के गिरफ्तार लोग भी आये थे। थाने में जगह न होने के कारण कुछ लोग बाहर रहते थे कुछ थाने में ताला बन्द करके थाने के अन्दर रह रहे थे। सभी मुसहर ही थाने में थे। मैं रात भर यही सोच रहा था कि क्या इस हत्या के जुर्म के आरोपी सभी मुसहर ही हैं।

साथ ही साथ मुझे अपने परिवार की चिंता भी सता रही थी। जैसे-तैसे रात गुजर गयी, सुबह होने पर कुछ उम्मीद हुई कि शायद ये लोग पुछताछ करके

                                                    कमलेश की जली हुई मड़ई
छोड़ देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। एक के बाद एक-एक कर के सभी मुसहरो को छोड़ने लगे। मैं सोच रहा था शायद अब मेरा नम्बर आयेगा। मैं भी अपने घर जाऊँगा, लेकिन मेरी उम्मीदों पर पानी फिर गया। मैं और मेरे साथ चारो लोगों को पुलिस हिरासत से छुटकारा न मिला। मुझसे और इन लोगों से पुलिस बार-बार पुछती-‘‘क्यों, तुमने राजभर की हत्या की है?’ मैंने कहा-‘‘मैं किसी राजभर को नहीं जानता, मैंने किसी को नहीं मारा है।’’ तब वह मुझे डंडे से मारते और बोलते तुम अपना जुर्म कबूल नहीं कर रहे हो। वे मुझे जबरदस्ती हत्या का आरोपी बना रहे थे, कह रहे थे-‘‘तुम्हारी रिश्तेदारी धरसौना है।’’ मैं सोचने लगा रिश्तेदारी होने के कारण मुझे इतनी बड़ी सजा मिल रही है। जहाँ-जहाँ रिश्तेदारी है क्या वहाँ कोई किसी भी तरह की घटना घटेगी तो मैं उसका जिम्मेदार हो जाऊँगा। मैं उनकी मार खाता और रोता रहता, दिन भर यही सिलसिला चलता रहा। दुसरे दिन सभी मुसहरो को छोड़ दिया गया। मुझे ही सिर्फ पुलिस की हिरासत में रखा गया। यह देख मैं और डर गया कि कहीं यह लोग मुझे जेल न भेज दें, तब मेरा और मेरे घर वालों का क्या होगा। मेरी कच्ची गृहस्थी थी, सभी मेरे ऊपर आश्रित थे। घर के लोग जो कुछ बनी मजदूरी मिलती, उसी को करके अपना पेट चला रहे थे। मेरी पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल हो गया था। मैं भी पुलिस की मार से कमजोर हो गया था। थाने में रूखा-सुखा मिलता था, पर खाया नहीं जाता था। डंडे मारने से थकने के बाद पुलिस ने जबरदस्ती जुर्म कबूल करने के लिए मेरे पैरों पर रोलर चलवाया, मैं चिखता-चिल्लाता, ‘‘साहब! यह क्या कर रहे है।’’ लेकिन मुझ पर उनको दया नहीं आयी। रोलर चलने के बाद मेरा शरीर ढीला पड़ गया, जैसे लग रहा था जान ही नहीं है। मै बहुत रो रहा था, बार-बार यही शब्द मेरे मुँह से निकलता, मैंने कोई हत्या नहीं की है, मुझे मत मारो, लेकिन वो लोग एक न सुनते। मैंने अपनी जिन्दगी में सोचा भी नहीं था कि यह दिन मुझे देखना पड़ेगा। मेरा घर मेरे बच्चे व पत्नी सभी परेशान और दुःखी थे। मेरी हालत के बारे में सुनकर उनका भी रो-रोकर बुरा हाल हो गया था। पुलिस के इस व्यवहार को देखकर मुझे लगता था मैं यहाँ से जिन्दा वापस अपने परिवार में नही जा पाऊँगा। मार के साथ-साथ पुलिस मुझे भद्दी-भद्दी गालियाँ भी देती थी। तीसरे दिन मेरी स्थिति अधिक खराब होती देख उन लोगों ने मुझे छोड़ दिया। लेकिन मेरे शारीर पर इतनी चोट थी कि मैं अपने पैरों पर उठ कर चल नहीं पा रहा था। कोशिश कर रहा था कि किसी तरह इनके चंगुल से निकल कर मैं अपने घर जाऊं। मैं एक-एक कदम रखते हुए किसी तरह बाहर निकला, तभी फिर पुलिस वाले मुझे बोले ‘‘यहीं रुको, कोई आये-जाये तो उसे पानी पिलाना।’’ यह सुनते ही मेरे होश उड़ गए, “शारीर फिर निर्जीव-सा हो गया। दस दिन तक थाने में रह कर आने-जाने वाले लोगों को नाश्ता-पानी करवाता और खाना बनाता। बार-बार मन में यही ख्याल आता, एक तो मेरे ऊपर इतनी ज्यादती की और मुझे घर पर भी जाने नहीं दे रहे हैं। मुझसे दस दिन तक गुलामी करवाया। मुझे मजदूरी भी नहीं दी। मुझे बहुत दुःख हो रहा था लेकिन वहाँ से छूटने पर मेरी जान में जान आयी, मैं घर चला आया।

आज भी मुझे पुलिस से डर लगता है क्योंकि पुलिस बेगुनाह मुसहर को ही परेशान करती है। पुलिस की इस घटना से मेरा पारिवारिक जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ। वहाँ से आने के बाद मैं शारीरिक रूप से अस्वस्थ रहने लगा मुझे काम करने में दिक्कत होने लगी। जिसके कारण आर्थिक स्थिति खराब हो गयी है। बच्चे भी अब अलग रहने लगे हैं। एक लड़के की शादी की जिम्मेदारी सिर पर है। टेस्टीमोनियल थेरेपी के तहत ’मानवाधिकार जन निगरानी समिति’ द्वारा टेस्टीमोनियल थेरेपी प्रदान की गयी। टेस्टीमोनियल थेरेपी के तहत मनोवैज्ञानिक व सामाजिक उपचार से राहत मिली थी कि तभी अचानक दिसम्बर माह में मड़ई में आग लग गयी और साड़ी गृहस्थी तबाह हो गयी। सारा समान, बिस्तर, कम्बल, कपड़ा, खटिया और अनाज जलकर खाक हो गए। उसके बाद से तो जीवन और भी बदतर हो गया है। बच्चे अलग रहते हैं। कोई भी आर्थिक मदद नही करता है। ‘मानवाधिकार जन निगरानी समिति’ वाराणसी ने रिहैबिलिटेशन एण्ड रिसर्च सेन्टर फॉर टार्चर विक्टिम्स, डेनमार्क के सहयोग से 9,800 रुपये प्रदान कर हमारे पुर्नवास में सहयोग प्रदान किया है। हम सभी निराशा की गर्त में थे, लेकिन समिति के सहयोग से हमारी जिंदगी में रोशनी आ गयी है और जीवन अब अच्छा लग रहा है।

बरखा सिंह और मीना कुमारी पटेल के साथ बातचीत पर आधारित



डॉ0 लेनिन रघुवंशी 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति' के महासचिव हैं और वंचितों के अधिकारों पर इनके कामों के लिये इन्‍हें 'वाइमर ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', जर्मनी एवं 'ग्वांजू ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', दक्षिण कोरिया से नवाज़ा गया है. लेनिन सरोकार के लिए मानवाधिकार रिपोर्टिंग करेंगे, ऐसा उन्‍होंने वायदा किया है. उनसे pvchr.india@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है.

Tags: kamlesh, police attrocity

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